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अदभुत रहस्य:– बाबा तुलसी दास जी ने रामचरित्र मानस में लिखा है:———–
लक्ष्मणहुँ यह मरम ना जाना ।
जा कुछ चरित रचा भगवाना ।।
जा कुछ चरित रचा भगवाना ।।
वेदवती नाम की एक कन्या थी जो भगवान विष्णु की तपस्या कर रही थी। रावण जबरन उसको अपनी पत्नी बनाना चाहता था। वेदवती ने योग क्रिया द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया और रावण को श्राप दिया _मेरे ही द्वारा तेरा संहार होगा __ तुझे मारने के हित में अवतार हमारा होगा । अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन में समाहित कर लिया ।
एक दिन पंचवटी में मारीच नामक राक्षस का बध करने के लिए भगवान राम आश्रम से बाहर चले गये। सीता जी के कठोर बचन सुनके लक्ष्मण जी भी राम जी के पीछे — पीछे चले गये ।
तत्पश्चात् राक्षस राज रावण सीता को हर ले जाने के लिए आश्रम के समीप आया , उस समय अग्नि देव भगवान राम के अग्नि होत्र-गृह में विद्यमान थे ।
अग्नि देव ने रावण की चेष्टा जान ली और असली सीता को साथ में लेकर पाताल लोक अपनी पत्नी स्वाहा के पास चले गये और सीता जी को स्वाहा की देख रेख में सौंप कर लौट आये ।
अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन से अलग करके सीता के समान रूप वाली बना दिया। और पर्णशाला में सीता जी के स्थान पर उसे बिठा दिया ।
रावण ने उसी का अपहरण करके लंका में ला बिठाया । तदन्तर रावण के मारे जाने पर अग्नि परीक्षा के समय उसी वेदवती ने अग्नि में प्रवेश किया।
उस समय अग्नि देव ने स्वाहा के समीप सुरक्षित जनकनंदनी सीतारूपा लक्ष्मी को लाकर पुन: श्री राम जी को सौंप दिया और वेदवती रूपी छाया सीता के अपने तन में समाहित कर लिया।
तब सीता जी ने भगवान राम से कहा :—
प्रभु ! इस वेदवती ने बडे दुख सहे हैं । ये आप को पती रूप में पाना चाहती है इस लिए आप इसे अंगीकार कीजिए।
भगवान राम ने कहा ! समय आने पर मै इसे पत्नी रूप में जरूर स्वीकार करूँगा ।
समय बीता :——- राजा आकाश राज यज्ञ करने के लिए आरणी नदी के किनारे भूमि का शोधन कराया । सोने के हल से पृथ्वी जोती जाने लगी तब बीज की मुट्ठी बिखेरते समय राजा ने देखा, पृथ्वी से एक कन्या प्रकट हुई है, जो कमल की शय्या पर सोई हुई है ।सोने की पुतली सी शोभा पा रही है । राजा ने उसे गोद में उठा लिया और ‘ यह मेरी पुत्री है ‘ ऐसा बार – बार कहते हुए महल की ओर चल दिये, तभी आकाश बाणी हुई :— राजन ! वास्तव में ये तुम्हारी ही पुत्री है । इस कन्या का तुम पालन-पोषण करो ।
यह कन्या वही वेदवती है। राजा के कुलगुरू ने इस कन्या का नाम पदमावती रखा । धीरे-धीरे समय बीता कन्या युवा हुई। कन्या का विवाह वेंकटाचल निवासी श्री हरि से हुआ।
यह वही वेदवती छाया रूपी सीता है जिसे संसार :–पद्मिनी ,पदमावती ,पद्मालया के नाम से जानते हैं ।
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